बच्चे को कैंसर के इलाज के दौरान प्रशामक देखभाल के भाग के रूप में एंटरल पोषण (ट्यूब फीडिंग) की आवश्यकता पड़ सकती है। खिलाने वाली नलियों को नाक (एनजी ट्यूब, एनजे ट्यूब) या पेट की भित्ति (जी ट्यूब, जीजे ट्यूब, जे ट्यूब) के माध्यम से लगाया जा सकता है। ट्यूब और त्वचा की उचित देखभाल से असुविधा कम होगी और संक्रमण व अन्य समस्याएं होने का जोखिम कम होगा।
नाक से डाली गई ट्यूबों से नाक के अंदर और जिस स्थान पर ट्यूब पर टेप लगी होती है वहां की त्वचा पर जलन हो सकती है। उचित देखभाल से असुविधा और त्वचा संबंधी समस्याओं को रोकने में मदद मिल सकती है।
गैस्ट्रोस्टोमी (जी) ट्यूबें, गैस्ट्रो-जेजुनोस्टोमी (जीजे) ट्यूबें और जेजुनोस्टोमी (जे) ट्यूबें वे खिलाने वाली नलियां हैं जिन्हें पेट की भित्ति में किए गए एक छोटे से छेद (स्टोमा) के माध्यम से लगाया जाता है। वे लंबी या लो-प्रोफ़ाइल ट्यूबें हो सकती हैं। ट्यूब के गुज़रने के मार्ग का घाव भर जाने पर, आमतौर पर 6 सप्ताह बाद, लंबी ट्यूब की जगह एक लो-प्रोफ़ाइल या बटन ट्यूब का उपयोग किया जा सकता है।
घाव भर जाने के बाद, ट्यूब के आसपास की त्वचा दर्दरहित होनी चाहिए। छेद का आकार और आकृति बिल्कुल खिलाने वाली नली के आकार की होनी चाहिए।
स्वस्थ जी ट्यूब स्थानों के लिए बहुत अधिक देखभाल की आवश्यकता नहीं होती। उस भाग को साफ़ रखने के लिए आमतौर पर हर रोज साबुन और पानी से स्नान करना ही काफी है। खिलाने वाली नली वाले स्थानों के लिए सामान्य देखभाल के सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
यह जानना आवश्यक है कि कौन सी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं और उनके उत्पन्न होने पर उनका समाधान कैसे किया जा सकता है।
ट्यूब के आसपास रिसाव हो सकता है। यदि रिसाव ट्यूब से होता है, तो यह समस्या बैलून भर जाने के कारण हो सकती है। रिसावों की समस्या सफ़ेद कोशिकाओं की कमी से भी संबंधित हो सकती है।
नमी और पेट के अम्लीय तरल से त्वचा लाल हो सकती है और उसमें जलन हो सकती है। यदि ऐसा होता है, तो त्वचा को प्रति दिन कई बार पानी से साफ़ करें। प्रभावित भाग को रिसाव अधिक होने की स्थिति में बार-बार साफ़ करना होगा। साफ़ करने के बाद त्वचा को सावधानी से सुखाएं। बैरिअर पाउडर या मरहम की आवश्यकता पड़ सकती है। यदि त्वचा में सुधार नहीं आता या रिसाव होना जारी रहता है या रिसाव अधिक मात्रा में होता है, तो अपनी देखभाल टीम को बताएं।
रिसाव के संभावित कारणों में निम्नलिखित शामिल हैं:
पेट के अम्ल को नियंत्रित करने वाली या पेट को खाली करने की क्रिया को बढ़ाने वाली दवाइयां रिसावों से पहुंचने वाली क्षति को कम करने में मदद कर सकती हैं। बच्चे की देखभाल टीम से इन विकल्पों की चर्चा करें।
ग्रेन्युलेशन टिशू या कणांकुर ऊतक एक अतिरिक्त त्वचा ऊतक होता है जो स्टोमा के स्थान पर विकसित हो सकता है। ग्रेन्युलेशन टिशू या कणांकुर ऊतक होना आम बात है। यह आमतौर पर मुंह के अंदर की त्वचा के समान, लाल और नम दिखाई देता है। यह ऊतक नाजुक होता है और इसमें थोड़ा रक्तस्राव या रिसाव भी हो सकता है। ग्रेन्युलेशन टिशू या कणांकुर ऊतक त्वचा पर ट्यूब के रगड़ खाने से होने वाले घर्षण या त्वचा के छिलने के कारण हो सकता है। ग्रेन्युलेशन टिशू या कणांकुर ऊतक बनने से रोकने में मदद करने वाले तरीकों में प्रभावित स्थान को सूखा रखना, ट्यूब की हिलने की गति को सीमित करना और ट्यूब बिल्कुल फिट बैठती है यह सुनिश्चित करना शामिल है। ग्रेन्युलेशन टिशू या कणांकुर ऊतक का इलाज फ़ोम की पट्टी या सिल्वर नाइट्रेट लगाकर किया जा सकता है। कुछ मामलों में, इसे सर्जरी से निकाला जा सकता है।
एक स्वस्थ बच्चे में स्टोमा या इसके चारों ओर की त्वचा पर संक्रमण दुर्लभ ही होता है। हालांकि, कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले बच्चों में ट्यूब के स्थान पर संक्रमण होने का अधिक जोखिम होता है। संभावित संक्रमण के संकेतों में निम्नलिखित शामिल हैं:
यद्यपि लाली और स्राव संक्रमण के संकेत हो सकते हैं, लेकिन उनके होने के अन्य कारण भी हो सकते हैं। कभी-कभी पेट की सामग्री त्वचा पर मौजूद जीवाणु के साथ मिश्रित हो सकती है और उससे दुर्गंधयुक्त स्राव हो सकता है। स्रावों के कारण होने वाली लालिमा का आमतौर पर त्वचा को बार-बार साफ़ करके इलाज किया जा सकता है। यदि लक्षणों में सुधार नहीं आता या संक्रमण के संकेत दिखाई देते हैं तो अपनी देखभाल टीम से संपर्क करें।
स्टोमा के आसपास रक्तस्राव होने के कई कारण हो सकते हैं। ट्यूब बदलने के बाद प्रभावित स्थान में रक्तस्राव हो सकता है। रक्तस्राव ग्रेन्युलेशन टिशू या कणांकुर ऊतक के कारण भी हो सकता है जहां पर त्वचा बहुत भंगुर होती है। थोड़ा बहुत रक्तस्राव होना कोई गंभीर बात नहीं है। यदि कुछ मिनट बाद तक रक्तस्राव नहीं रुकता या और बढ़ जाता है, तो उस भाग पर दबाव डालें और तुरंत देखभाल टीम को कॉल करें।
सफ़ेद कोशिकाओं की कमी तब होती है जब सारी न्युट्रोफिल की संख्या (एएनसी) 500 से कम हो जाती है। सफ़ेद कोशिकाओं की कमी से अक्सर स्टोमा का आकार बढ़ जाता है। क्योंकि प्रतिरक्षा प्रणाली कमज़ोर होती है, इसलिए शरीर उस छेद को भरने और संक्रमण से लड़ने का प्रयास करना बंद कर देता है। इसके कारण प्रभावित स्थान गीला रहता है, उसमें रिसाव और दर्द होता है। इससे जीवाणु पैदा हो सकते हैं और संक्रमण हो सकता है। प्रभावित स्थान में तब तक सुधार नहीं आएगा जब तक कि सफ़ेद कोशिकाओं की संख्या फिर से नहीं बढ़ जाती है। कभी-कभी प्रभावित स्थान बेहतर दिखना शुरू होने से पहले और खराब दिखाई देने लगेगा। ट्यूब के स्थान का इलाज देखभाल टीम द्वारा दी गई सलाह अनुसार ही किया जाना चाहिए।
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समीक्षा की गई: फरवरी, 2019